Varanasi News: महादेव को अतिप्रिय है निंदक, शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन पंडित प्रदीप मिश्र ने किया शिव का बखान, बताया बेलपत्र का महत्व.

Story By: पूर्वांचल भास्कर डेस्क।
वाराणसी। रामनगर के डोमरी स्थित सतुआ बाबा गौशाला डोमरी में महामंडलेश्वर संतोष दास सातुआ बाबा के सानिध्य में आयोजित सात दिवसीय शिवमहापुराण कथा के तीसरे दिन पंडित प्रदीप मिश्रा जी (सीहोर वाले) ने शिवमहापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए क्रोध को पी जाने की बात कही। शिवमहापुराण की कथा कहती है कि भगवान शिव को निंदक सदैव प्रिय होते हैं। निंदक का तात्पर्य नास्तिक व्यक्ति से है जो कहता है कि हम भगवान को नहीं मानते और भगवान की बुराई करता रहता है। वही असली भक्त होता है, वही भगवान को प्रिय होता है। असलियत का जीवन जीना अत्यंत कठिन होता है, नकली जीवन तो अधिकांश लोग जीते हैं। लड़की कढ़ाई, बुनाई, पढ़ाई जानती है और लड़का पढ़ा लिखा होता है, इंजीनियर होता है, साइंटिस्ट होता है, परंतु फिर दोनों के विवाह में लेन देन की बात होती ही है।

वही वाराणसी के लोगों को बताया कि वह बड़े ही अच्छे और मीठा बोलते हैं। जहां मैं ठहरा हूं, वहां के घर वालों ने मुझसे पूछा, “गुरु जी, लोग आपका फोटो खींचते हैं, कोई कैमरे से, कोई मोबाइल से खींचता है, आप नहीं खींचते हैं?” हमने कहा, “हम भी खींचते हैं, हम शिवमहापुराण के माध्यम से तुम्हें खींचते हैं। तुम्हारा फोटो डिलीट हो सकता है, परंतु यह शिवमहापुराण की कथा में जो एक बार आकर बैठ गया और उसका दिल खींच कर आ गया, तो वह कभी भी बाबा के पास डिलीट नहीं होता।” वही आगे नारद जी की कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब नारद जी काम पर विजय प्राप्त कर लेते हैं और देव ऋषि नारद देवाधिदेव महादेव के पास जाते हैं, तो शंकर भगवान ने देखा कि देव ऋषि नारद आए हैं, तो उन्हें प्रणाम किया। महादेव ने कहा है कि कोई ऋषि, कोई उपासक, कोई संत घर आया है, तो उसका सम्मान करना सीखिए।

पूरी शिवमहापुराण कथा को उठाकर देख लीजिए, चौबीस हजार श्लोक की यह कथा है। पूरी कथा में किसी भी देवी या देवता की कहीं भी निंदा नहीं की गई है। परंतु यह लिखा गया है कि शंकर करुणा, कृपा और दया कैसे करते हैं। भगवान को प्रिय नहीं है निंदक, नकली और नास्तिक प्रिय है। जब नारद जी ने शिव जी से कहा कि जिस कामदेव पर आप नहीं विजय कर पाए, उस पर मैं विजय प्राप्त कर चुका हूं, मैंने स्वयं जीता है। भगवान शंकर सिंहासन से उठकर अपने गले की रुद्राक्ष की माला देवऋषि नारद के गले में डाल दी। कोई साधक, कोई उपासक अपने गले की माला उतार कर आपके गले में डाल रहा है, तो इसका मतलब यह है कि मेरे परमात्मा के चित्र में, जो मेरे चित्र में राम नाम की माला जपी हुई है, वह मेरे मालिक के माध्यम से तुम्हारे सीने तक जाए और तुम्हारे अंदर उतर जाए, तुम्हारे हृदय में उतर जाए। “भोले मैं तेरी पतंग, शंभू मैं तेरी पतंग, हवा विच उड़ती जावांगी, बाबा डोर जाने छड़ी ना में कदी जावांगी” आदि भजन पर लोग खूब झूमे।

कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लोग कहते हैं शंकर भगवान भस्म करते हैं, परंतु शिव को समझो तो सही। शंकर भगवान अनायास कभी क्रोध नहीं करते। अगर शंकर भगवान क्रोध के देवता होते हैं, तो उनका नाम आशुतोष नहीं होता। शिव महापुराण की कथा कहती है कि शंकर भगवान भस्म नहीं करते हैं। उनके शरण में जाने पर काम, क्रोध, वासना, अहंकार, शक्ति, तृष्णा को शिव भस्म कर देते हैं। उन्होंने वाराणसी की सविता तिवारी का पत्र पढ़ते हुए कहा कि उनके माध्यम से दी गई चांदी की थाली बाबा भोलेनाथ ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए दी गई है। उनके बारे में बताया कि इन्हें बच्चेदानी में समस्या थी। ऑपरेशन के बाद डॉक्टर ने बताया कि कैंसर है। इन्होंने कथा सुनते हुए कथा पर विश्वास नहीं किया, परंतु उनके बताए हुए उपाय को किया। एक लोटा जल चढ़ाया, उसके बाद उन्हें हेपेटाइटिस बी हुआ। इसके बाद उपचार कराया और लगातार कथा सुनी। एक लोटा जल चढ़ाया, बेलपत्र खाया। आज उनके ऊपर कृपा हुई और उनका कैंसर समाप्त हो गया।

शिव की महिमा को बताते हुए कहा कि दूर कहीं बड़े मंदिर में जाने की आवश्यकता नहीं है। यदि आपके आसपास भी कोई छोटा मंदिर हो तो वहां भी आप जाकर एक लोटा जल चढ़ाना प्रारंभ कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि अभिमान का त्याग करिए। जिस प्रकार अन्न जल के त्याग से उपवास से हम व्रत रहते हैं, उसी प्रकार हमें अभिमान का भी त्याग करना चाहिए। इससे हमारे मानसिक विकार दूर होते हैं। वही एक कहानी में बताया कि आप कभी बाजार जाते हैं तो टमाटर खरीद के लाते हैं, मिर्च खरीद के लाते हैं, आलू खरीद के लाते हैं, और कहीं उसमें एक दो आलू खराब निकलता है तो क्या दुखी हो जाते हैं? कभी बैंक जाते हैं तो नोट की गद्दी में एक दो नोट खराब निकल जाते हैं तो क्या उस नोट को आप फेंक देते हैं? यदि नहीं, तो उसी प्रकार परिवार में यदि कोई आपको नहीं पसंद है, तो भी आप उसे मिलजुल कर एक साथ लेकर चलिए। आगे बताया कि क्रोध तुमसे भी अधिक बुद्धिमान होता है। वह जब भी आता है, तो वह हमेशा कमजोर व्यक्ति पर ही आता है। इसलिए क्रोध को अपने ऊपर कभी हावी मत होने दीजिए।

उन्होंने कहा कि बेलपत्र को सदैव सम्मान दें, यह भगवान भोले को अति प्रिय है। वही लोगों से अनुरोध किया कि आप आप लोग जब विश्वनाथ जी के दर्शन को मंदिर जाते हैं और भोलेनाथ के ऊपर दुग्ध जल और बिल्व पत्र अर्पित करते हैं, इस बीच रास्ते में मंदिर में कहीं बेलपत्र गिरा हो तो उसके ऊपर पैर कभी ना रखें और उसे कहीं किनारे रख दें। वापस पूजा करके आने के बाद उसे उचित स्थान पर प्रवाहित करें, क्योंकि बेलपत्र भगवान शिव को अति प्रिय है। ऐसा करने से आपको शिवलिंग पर चढ़ाए गए बेलपत्र से अधिक पुण्य मिलेगा। कथा के अंत में आरती के साथ तीसरा दिन समाप्त हुआ। इस बीच मंच पर महामंडलेश्वर संतोष दास सतुआ बाबा के साथ आयोजन समिति के संजय केशरी, संदीप केसरी, नीरज केशरी सहित संजय माहेश्वरी, बाबू भैया, मनोज गुप्ता, पंकज आत्मा, विश्वेश्वर सहित कथा में आए हुए जजमान व लाखों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।