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Sonbhadra News: लकड़ी पर पक रहा मिड डे मील, बेसिक शिक्षा विभाग के लचर रवैये से छात्र धुएं में पढ़ने को मजबूर.

Story By: कामेश्वर विश्वकर्मा।

सोनभद्र।

मिड-डे-मील बनाने के नाम पर रसोई गैस पर हर साल लाखों रुपये जनता के टैक्स रूपी पैसों को सरकार द्वारा खर्च किया जाता हैं। इसके बावजूद तमाम स्कूलों में आज भी मिट्टी के चूल्हों पर लकड़ी जलाकर खाना बनाया जा रहा है। मामला चोपन ब्लॉक के आदिवासी क्षेत्र का है जहां प्राथमिक विद्यालय बैरपुर टोला टेढ़ीतेन में रसोई गैस सिलिंडर की जगह मध्याह्न भोजन हमेशा लकड़ी पर ही बनता नज़र आता है। ग्रामीण राम सजीवन ने बताया कि विद्यालय में मध्याह्न भोजन हमेशा लकड़ी पर ही बनता है।

गैस सिलिंडर कहां है, इसका पता नहीं। यहां एक भी दिन गैस सिलिंडर नहीं जला है। विद्यालय में धुआं भर जाने की वजह से बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। बता दे कि शुरुआती दौर में स्कूलों में मिड डे मील चूल्हों पर बनता था। खाना बनने के समय पूरे विद्यालय परिसर में धुआं भर जाता था जिससे बच्चें धुएं में बैठ कर पढ़ने को मजबूर होते थे। इसको देखते हुए शासन ने सभी स्कूलों में गैस सिलिंडर और चूल्हा खरीदने के आदेश पारित किया।

आदेश मिलते ही अधिकांश स्कूलों ने गैस सिलिंडर और चूल्हा खरीद लिया, लेकिन गैस सिलिंडर से मिड डे मील बनाने की योजना में अध्यापकों की एक अतिरिक्त कमाई का जरिया बन बैठा है। अभी भी कई ऐसे विद्यालय है जहां पर सिलेंडर सिर्फ दिखाने के लिए होता है, उसका उपयोग नहीं होता। ऐसे स्कूलों में से एक स्कूल विकास खण्ड चोपन का प्राथमिक विद्यालय बैरपुर टोला टेढ़ीतेन है। जहां रसोई गैस का पैसा अध्यापक डकार जा रहे है।बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा जिले में मिड डे मील योजना पर करोड़ों रुपये खर्च किया जाता है।

इसमें कई लाख रुपये अकेले गैस के ऊपर खर्च होते हैं, लेकिन फिर भी स्कूलों में मिट्टी के चूल्हे पर मिड डे मील बनाने की प्रथा आज भी बदस्तूर जारी है। खास तौर से आदिवासी क्षेत्रों में इस तरह की बात अक्सर देखने को मिलती है। अब तो ये बात शिक्षा विभाग ही बता सकता है कि उक्त विद्यालय ने गैस कनेक्शन लिया है कि नहीं गैस कनेक्शन लेने के लिए कभी प्रार्थना पत्र कार्यालय में दिया है की नहीं। जांच बीईओ ही करके स्पष्ट करेंगे विभाग द्वारा पूर्ति कार्यालय फाइल भेजी गई है की नहीं।

क्या स्कूल के नाम से कभी गैस किताब जारी हुई है कि नहीं, गैस किताब में गैस लेने की एंट्री हुई है कि नहीं। अगर गैस नहीं लिया जा रहा तो मिड डे मील कैसे बन रहा। अगर गैस लिया जा रहा तो वो गैस सिलेंडर कहा जा रहा। क्या ग्रामीणों के आरोप निराधार है या सही इसकी जांच होनी चाहिए। साथ ही बच्चों को दुग्ध दिया जा रहा है या सफेद पानी इसकी भी जांच होनी चाहिए। इतना ही नहीं शासन के अनुरूप विभागीय अधिकारी स्कूली बच्चों को वो सुविधा भी नहीं दे रहे जिसपर उनका हक बनता है।

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