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Sonbhadra News: फंदे पर झुली नाबालिक किशोरी, झांसे में आकर उठाया आत्मघाती कदम! परिजनों ने पुलिस से लगाई न्याय की गुहार.

Story By: प्रमोद कुमार, चोपन।

सोनभद्र।

चोपन थाना क्षेत्र में संदिग्ध परिस्थितियों में एक नाबालिग ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिजनों ने थाने में दिए तहरीर में संदिग्ध मौत पर समुचित जांच एवं विधिवत कार्रवाई की मांग की है। दिए गए तहरीर में प्रार्थी द्वारा बताया गया है कि 16 अगस्त को शाम 6 बजे घर के कमरे में साड़ी का फंदा बांधकर कर पंखे पर झूलते हुए देखा गया तुरंत उतारकर सामुदायिक अस्पताल ले जाया गया। वहां से रेफर होने के बाद वाराणसी के ट्रामा सेंटर पहुंचने पर पता चला की बेटी ने दम तोड़ दिया है। पंचनामा तथा पोस्टमार्टम की कार्रवाई के बाद दाह संस्कार किया गया।

घर पर मृतक बेटी के सभी सामानों का खोजबीन किया गया तो उसका एक अंतिम पत्र एवं नोटबुक मिला उसमें उसके द्वारा लिखे हुए दुःखद अंतिम कथन लिखे हुये थे। परिजनों ने दिए हुए तहरीर में बताया कि मेरी मृतक बेटी किसी के झांसे में फंसकर एवं उससे उत्प्रेरित होकर वह दुःखी तथा अत्यधिक परेशान थी, जब कि शायद वह किसी भय तथा शर्मिंदगीवश अपने परिवार तक को भी बात बताना उचित नहीं समझी और स्वयं इस दुनियां से विदा ले ली। घटना को गंभीरता से लेते हुए किसी के साजिश का शिकार एवं मजबूर हुए मेरी बेटी द्वारा आत्महत्या करने की संदिग्धता पर समुचित जांच हर पहलुओं को गंभीरता पूर्वक लेकर जांच करने की बात कही गई।

वही सीओ संजीव कटियार ने घटना की बाबत बताया कि घटना पिछले चार दिन पहले की है लड़की ने बंद कमरे में सुसाइड किया था। इसमें पुलिस कार्रवाई कर रही है। सुसाइड नोट नहीं उसकी डायरी जरूर मिली है। उसमें कई चीजों का जिक्र है साथ ही कुछ ड्राइंग बनाई हुई थी। डायरी में कही भी ऐसी बाते इंगित नहीं है जिससे लगे की उसके साथ शोषण या अन्य चीज हो रही थी। मोबाइल और सिडीआर डिटेल खंगाली जा रही है। आगे कुछ मिलता है तो अवगत कराया जाएगा। पुलिस लगातार परिवार के संपर्क में है।

आत्महत्या के बाद लड़की के मिले डायरी से परिजनों ने माना कि लड़की के साथ कुछ गलत हो रहा था जिसका जिक्र वो हमलोगों से नहीं कर पाई और टूट कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। घटना के बाद एक हस्ते खेलते परिवार में कोहराम ला दिया। पापा-मम्मी की लाडली चाचा-चाची की लाडली आज उनसे इस कदर दूर है कि चाह कर भी उस बेटी को दुलार नहीं कर पाएंगे। अंदर से टूट कर बिखड़ चुकी मासूम बच्ची बाहर से सभी को खुश दिखने के लिए खुश रहती थी। पापा की लाडली बिटिया को कोई था जो अंदर से खून के आंशु से सराबोर कर दिया था।

लेकिन पापा-मम्मी को दुःख न पहुंचे चाचा चाची को किसी भी तरह का कष्ट न हो छोटे भाई-बहनों को कोई दिक्कत न हो वो अंदर ही अंदर खून की आंशु का घोट पीती रही। घर की मासूम लाडली बिटिया अपने घर वालों की खुशियों का कितना ख्याल रखती थी उनके सामने उफ तक नहीं करने वाली बिटिया अब इस दुनिया में नहीं। भले ही अपने पर दुःख का पहाड़ टूट गया लेकिन मासूम ने घर वालों को तनिक भी दुःख होने का एहसास नहीं दिया।

बिटिया के अंतिम बोल….
इस दुनिया में आज मेरा आखिरी दिन है। जिसे भी मैं जानती हूं, उन सबको गुड बाय और जो मेरे दुश्मन हैं, उन्हें भी मैं दोस्त मानती हूं… पापा मैं जा सिर्फ दुनिया से रही हूं, आपके दिल से नहीं और मां आप दुनिया की बेस्ट मां हो…

2 अप्रैल से 25 अप्रैल तक भयानक घटना का जिक्र बिटिया के डायरी में देख परिजनों के होश उड़ गए। पिता ने कहा हमारी बिटिया के साथ कहि न कही गलत हो रहा था वो हमलोगों को बता नहीं पाई पिता के दुःखी कंठ से बात निकली की हमारी बिटिया ऐसी नहीं थी किसी के दबाव में आकर उसने आत्मघाती फैसले पर मजबूर हुई। डॉक्टर बनने की सोच और कुछ बड़ा करने के चाहत अधूरा छोड़ बिटिया इस दुनिया से विदा हो गई। काफी परेशान थी बिटिया लेकिन परिजनों को वो कैसे बताए जो परिवार वालों ने बड़े लाड प्यार से पाला था आखिर बिटिया किस तरह से अपनो से बताती शर्म ह्या बिटिया के अंदर कूट कूट कर भरा था।

इसलिए लोक लाज की वजह से अपने परिजनों को कुछ नहीं बता पाई। रोवाँ रोवाँ दुःख से भरा हर वो पल बिटिया कैसे बर्दाश्त करती थी इसका आकलन लगाना किसी की बस की बात नहीं। अंदर ही अंदर घुटती चली गई टूटती चली गई मगर इतने दिनों से बिटिया उफ तक का एहसास किसी को होने नहीं दी। जब भी बहुत उदास होती थी फिर भी हस्ते हुए अपने सबसे अजीज पापा को पुकारती थी और कहती थी पापा आज हमको घूमने जाने है आओ न पापा कहि घूमने चलते है।

लाडली बिटिया की आवाज़ पर तुरंत हामी भरते हुए पापा कभी मंदिर तो कभी ऊँची पहाड़ियों पर घुमाने चल देते। बिटिया रानी को कलाकारी का भी बहुत शौख था जब भी कोई कलाकृतियों का डिज़ाइन बनाती तो पापा को ज़रूर दिखाती। घटना से नगर के लोगों को भी दुःख है लेकिन लोगों का दुःख परिजनों के दुःख के आगे तिनका मात्र ही होगा।

सोचिये उस पिता पर क्या गुजरती होगी जिसने अपने और अपनी बिटिया के ख्वाबो को संजोए हुए परवरिस करता आया हो और कितने कष्टों से परिवार को खुशियां देने के लिए कितना संघर्ष करते आया हो। अब बिटिया की कला कैसे पिता देख पायेगा…. बिटिया का डॉक्टर बनने का सपना अब कैसे एक पिता पूरा कर पायेगा…. बिटिया को कैसे बॉलीबाल खेलते एक पिता देख पायेगा…. हर वो यादें अपने पापा-मम्मी चाचा-चाची और छोटे भाई-बहन को पीछे छोड़ कर दूर चली गई मासूम नन्ही सी बिटिया।

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