मुख्य खबरें/न्यूज़/chandauli news shakti peetha is in navratri in maa kali temple the wish of devotees is full hundreds of years old the statue of mother was found in the stream of ganga

Chandauli News: शक्ति पीठ माँ काली मंदिर में नवरात्र में होती है भक्तों की मुराद पूरी, सैकड़ों वर्ष पुरानी गंगा की धारा में मिली थी माता की प्रतिमा.

"1829 में महाराज काशी उदित नारायण सिंह बहादुर ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। शारदीय नवरात्र प्रारंभ होने के साथ माता के नौ रूपों की पूजा होती है। माना जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व गंगा की धारा में माँ काली की प्रतिमा मिली थी, जिसके बाद काशी नरेश ने माता के इस मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर के गर्भगृह में सुतली और विभिन्न रंगों का प्रयोग कर महिषासुर और देवी-देवताओं का सजीव चित्रण किया गया है"

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11:16 AM, Sep 23, 2025

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Chandauli News: शक्ति पीठ माँ काली मंदिर में नवरात्र में होती है भक्तों की मुराद पूरी, सैकड़ों वर्ष पुरानी गंगा की धारा में मिली थी माता की प्रतिमा.
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Story By: धर्मेंद्र जायसवाल, ब्यूरो चंदौली. 

चंदौली। वाराणसी से लगभग 50 किलोमीटर और जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर जिले के चकिया में स्थित है शक्ति पीठ माँ काली का मंदिर। 1829 में महाराज काशी उदित नारायण सिंह बहादुर ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। शारदीय नवरात्र प्रारंभ होने के साथ माता के नौ रूपों की पूजा होती है। माना जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व गंगा की धारा में माँ काली की प्रतिमा मिली थी, जिसके बाद काशी नरेश ने माता के इस मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर के गर्भगृह में सुतली और विभिन्न रंगों का प्रयोग कर महिषासुर और देवी-देवताओं का सजीव चित्रण किया गया है। अष्टधातु निर्मित महाघंटा स्थापित किया गया है। मंदिर के निर्माण में राजस्थान की कला की झलक साफ देखी जा सकती है।

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शारदीय नवरात्र में माता के मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की भीड़ देखी जा रही है। काशी के साथ-साथ जिले में भी श्रद्धा का संगम देखने को मिल रहा है। हजारों की तादाद में चकिया समेत पूर्वी बिहार, मिर्जापुर, और दूर-दराज से श्रद्धालु माँ के दरबार में हाजिरी लगाने के साथ ही माथा टेक मनौती पूरी करने के लिए आ रहे हैं। सुबह पांच बजे से ही मंदिर में होने वाली भव्य आरती की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। मंदिर के पुजारी से लेकर सेवादार तक एक परंपरागत परिधान में सजते हैं। 

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यह परिधान अपने आप में आकर्षक होता है। लोगों के हाथ में विभिन्न वाद्य यंत्र होते हैं। पूजा और आरती के लिए थाली मंदिर के पुजारी खुद तैयार करते हैं। इसके बाद शाम छह बजे से यहां महाआरती शुरू होती है। घंटा ध्वनि की आवाज जहां तक पहुंचती है, मानो पूरा एरिया भक्ति-मय हो जाता है। मंदिर की मान्यताओं की बात करें तो यहां कभी किसी जमाने में माँ महाकाली को खुश करने के लिए बकरे की बलि दी जाती थी। हालांकि, आज इस मान्यता और परंपरा पर प्रशासन ने रोक लगा दी है।

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मंदिर के पुजारी बताते हैं कि माँ काली आदिशक्ति हैं। गर्भगृह में जो महादेव विराजमान हैं, उनका नाम महाराजाधिराज के नाम से रखा गया है, जो उदितेश्वर महादेव, प्रसिद्धेश्वर महादेव, दीपेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां पांचों देवता हैं: महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती और गणेश। उन्होंने बताया कि मनोकामना पूर्ण होने के बाद भी लोग यहां पूजा-पाठ करते हैं। माता में शक्ति है, तभी लोग यहाँ दर्शन पूजन के लिए आते हैं। बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन पूजन करने आते हैं।

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माता के मंदिर में दर्शन करने आए श्रद्धालु कैलाश जायसवाल, शुभम मोदनवाल, अनील केशरी, प्रभाकर पटेल ने बताया कि यूपी, बिहार और दूर-दराज से आए सभी श्रद्धालुओं का मन्नतें पूरी होने पर आस्था के साथ पूरे परिवार के साथ चुनरी, नारियल, धूप अगरबत्ती चढ़ाते हैं। लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वहीं श्रद्धालु गौरव श्रीवास्तव ने बताया कि जो भी यहाँ अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है। मंदिर महाराज काशी नरेश द्वारा बनवाया गया है। माता की ऐसी मूर्ति शायद ही आपको कहीं और देखने को मिलेगी। यहाँ सच्चे मन से मांगी गई सभी की मुराद पूरी होती है।


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