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Sonbhadra News: उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ सम्पन्न हुआ.

4 दिनों तक चलने वाले लोक आस्था पर्व छठ महापर्व का आज उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ सम्पन्न हो गया है। रॉबर्ट्सगंज, चोपन, ओबरा समेत कई नगरो के नदी और तालाब पर बने घाटों पर भारी भीड़ रही। छठ पूजा पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए महिला पुलिसकर्मियों की अलग से ड्यूटी लगाई गई। घाटों पर गोताखोरों को भी तैनात किया गया था।

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11:47 AM, Oct 28, 2025

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Sonbhadra News: उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ सम्पन्न हुआ.
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नगर पंचायत चोपन के लिपिक अंकित पाण्डेय सूर्य देव को अर्घ्य देते हुए।

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Story By: चंदन कुमार, चोपन।

सोनभद्र।

लोक आस्था का महापर्व छठ उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। मंगलवार सुबह बड़ी संख्या में छठव्रती घाटों पर पहुंचे और भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर 36 घंटे का निर्जला व्रत तोड़ा। श्रद्धालुओं ने नदियों, तालाबों और पोखरों के पवित्र जल में डुबकी लगाई और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया।

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इस दौरान सभी ने अपने और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। छठ घाटों पर छठ पूजा समिति की ओर से व्रतियों के लिए दुग्ध का वितरण किया गया।

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उगते सूर्य को अर्घ्य देकर घर लौट रहे श्रद्धालुओं के लिए विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाएं भी की गई थीं।

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बिहार और झारखंड में छठ पर्व का विशेष महत्व है। सोनभद्र जिला इन दोनों राज्यों से जुड़ा होने के कारण यहां भी यह पर्व पूरी आस्था और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

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पर्व में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। चार दिवसीय छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है।

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दूसरे दिन चावल और गुड़ से बने प्रसाद को ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है। तीसरे दिन व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करती हैं।

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बिहार, झारखंड और पूर्वांचल समाज के लोगों का मानना है कि यह व्रत संतान प्राप्ति और पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है।

सिंदूर का भी विशेष महत्व होता है, मान्यता है कि मांग में लंबा सिंदूर लगाने से पति की उम्र लंबी होती है। चोपन सोन नदी तट, ओबरा और सिंदुरिया स्थित रेणुका नदी तट और विभिन्न तालाबों पर लाखों श्रद्धालुओं ने सूर्य देव को अर्घ्य दिया। तड़के 3 बजे से ही घाटों पर श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया था।

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हाथों में प्रसाद का सूप थामे व्रती महिलाओं ने पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य की उपासना की। सूर्य की पहली किरण दिखाई देते ही जयकारों के साथ अर्घ्य अर्पित किया गया। भारी संख्या में श्रद्धालु, विशेष रूप से महिलाएं, पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर एकत्रित हुई थीं।

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नाक तक लंबा सिंदूर लगाए महिलाओं ने घाट के किनारे विधि-पूर्वक छठी मैया की पूजा-अर्चना की। लोगों ने छठी मैया और सूर्य देव से अपने परिवार की सुख-समृद्धि, लंबी आयु और खुशहाली की कामना की।

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इस दौरान घाटों पर 'उगा हो सुरुजदेव, भिन भिनसरवा, अरघ केर-बेरवा, पूजन केर-बेरवा...', 'उगी हे दीनानाथ, जल्दी जल्दी उगा हे सूरज देव...' जैसे छठ गीत गूंजते रहे।

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वही पिछले 12 घंटों में हुई बारिश और हवा ने छठ घाट पर कुछ बाधा जरूर डाली, लेकिन लोक आस्था के इस महापर्व में शामिल होने से श्रद्धालुओं को नदी तट पर जाने से नहीं रोक पाई।भगवान सूर्य में अटूट आस्था के कारण बारिश में भी व्रती महिलाओं और श्रद्धालुओं का मन नहीं डगमगाया।

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छठ महापर्व चार दिवसीय होता है। पहले दिन नहाय-खाय होता है, जिसमें व्रती स्नान कर सात्विक आहार ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन शाम के समय गुड़, दूध और चावल वाली खीर बनाई जाती है।

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खरना के दिन पूरा दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और शाम को खीर खाकर 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है। तीसरे दिन डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद आखिरी दिन उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।

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व्रत का पारण पूजा में चढ़ाए गए प्रसाद जैसे ठेकुआ, केला और मिठाई आदि खाकर करना चाहिए। पारण उषा अर्घ्य के बाद ही किया जाता है, साथ ही बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर और छठी मैया का प्रसाद सभी को बांटा जाता है।


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