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Sonbhadra News: कलेक्ट्रेट पर वाम दलों का मनरेगा बचाओ अभियान, केंद्र सरकार पर बिल के माध्यम से मनरेगा को खत्म करने का लगाया आरोप.

संयुक्त वाम दलों के कार्यकर्ताओं ने मनरेगा योजना बचाने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट परिसर स्थित गांधी प्रतिमा के समक्ष धरना-प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार पर 'विकसित भारत-रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)' बिल के माध्यम से मनरेगा को खत्म करने का आरोप लगाया।

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6:10 PM, Dec 22, 2025

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Sonbhadra News: कलेक्ट्रेट पर वाम दलों का मनरेगा बचाओ अभियान, केंद्र सरकार पर बिल के माध्यम से मनरेगा को खत्म करने का लगाया आरोप.
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संयुक्त वाम दलों का मनरेगा योजना बचाने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट परिसर स्थित गांधी प्रतिमा के समक्ष धरना-प्रदर्शन।

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Story By: विकास कुमार हलचल, ब्यूरों सोनभद्र।

सोनभद्र।

संयुक्त वाम दलों के कार्यकर्ताओं ने मनरेगा योजना बचाने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट परिसर स्थित गांधी प्रतिमा के समक्ष धरना-प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार पर 'विकसित भारत-रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)' बिल के माध्यम से मनरेगा को खत्म करने का आरोप लगाया। कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने कहा कि महात्मा गांधी के नाम पर बनी 'महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट' (मनरेगा) योजना तत्कालीन यूपीए सरकार ने वाम दलों की पहल पर ग्रामीण खेत मजदूरों के हित में पारित की थी। इस योजना से देश के करोड़ों खेत मजदूरों को काम की गारंटी मिली थी। नेताओं ने आरोप लगाया कि मौजूदा केंद्र सरकार मनरेगा को 'विकसित भारत-रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)' बिल से बदलना चाहती है। उनका कहना है कि यह बिल लोकसभा में लाकर मनरेगा को कानूनी रूप से खत्म करने की साजिश है। उन्होंने बताया कि मनरेगा एक्ट में 90 प्रतिशत बजट केंद्र सरकार और 10 प्रतिशत बजट राज्य सरकारें देती थीं। इसके विपरीत, नए 'विकसित भारत-रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) एक्ट' में केंद्र सरकार को 60 प्रतिशत और राज्य सरकारों को 40 प्रतिशत बजट की व्यवस्था करनी होगी। वाम दलों का तर्क है कि प्रांतीय सरकारें पहले से ही भारी कर्ज में डूबी हैं, ऐसे में वे 40 प्रतिशत बजट का इंतजाम नहीं कर पाएंगी। इससे मनरेगा योजना धन के अभाव में बंद हो जाएगी और केंद्र सरकार को इसे बंद करने का बहाना मिल जाएगा, जिससे ग्रामीण खेत मजदूरों की आजीविका छिन जाएगी। प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगों में कहा कि 'विकसित भारत-रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)' बिल को तत्काल वापस लिया जाए। मनरेगा जैसी ऐतिहासिक योजना को बदस्तूर जारी रखा जाए और मनरेगा में केंद्र तथा प्रांतीय सरकारों द्वारा दिए जाने वाले पुराने बजट व्यवस्था को जारी रखा जाए। अन्य मांगों में खेत एवं ग्रामीण मजदूरों को वर्ष में 200 दिन काम और 600 रुपए प्रतिदिन न्यूनतम गारंटीशुदा मजदूरी देने की बात कही गई। साथ ही, 55 वर्ष की उम्र पूरी होने पर 10,000 रुपए प्रति माह पेंशन और खेत एवं ग्रामीण मजदूरों के सामाजिक सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करने की मांग की गई। उन्होंने यह भी मांग की कि महात्मा गांधी के नाम पर बने मनरेगा एक्ट को समाप्त करके लाए जा रहे नए बिल पर रोक लगाई जाए और भाजपा सरकार की "हिंदू राष्ट्र" बनाने की तरफ आगे बढ़ने की कथित साजिश पर भी तत्काल रोक लगाई जाए।

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वामपंथी नेता आरके शर्मा ने बताया, संयुक्त वाम मोर्चा ने मनरेगा कानून में किए गए संशोधनों और बजट कटौती के विरोध में सोमवार को जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन किया। इस मोर्चे में सीपीएम, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) जैसी पार्टियां संयुक्त रूप से शामिल थीं। आरके शर्मा ने प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए कहा कि केंद्र सरकार मनरेगा का नाम बदलकर 'विकसित भारत जी राम जी' कर रही है और इसके प्रावधानों में बदलाव कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि इन संशोधनों का उद्देश्य मजदूरों के अधिकारों को खत्म करना है। शर्मा ने मनरेगा को एक ऐतिहासिक योजना बताया, जिसे वामपंथी दलों के संघर्ष के बाद यूपीए-1 सरकार के दौरान लागू किया गया था। यह योजना बिना किसी भेदभाव के हर ग्रामीण हाथ को काम की गारंटी देती थी और यदि 14 दिनों तक काम नहीं मिलता था, तो 15वें दिन बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान था। उन्होंने कहा कि सरकार ने मनरेगा के बजट में कटौती की है और कानून में संशोधन करके 100 दिन के काम को 120 दिन करने की बात कही है। हालांकि, इसमें 60 दिन ऐसे होंगे जब मजदूरों को बड़े किसानों के खेतों में काम करना होगा। शर्मा ने इसे दलितों, पिछड़ों और गरीबों को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने की साजिश करार दिया। संयुक्त वाम मोर्चा ने राष्ट्रपति से मांग की कि मनरेगा को उसके मूल स्वरूप में बहाल किया जाए और कानून में किए जा रहे संशोधनों को वापस लिया जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार अपने रवैये पर कायम रहती है, तो आने वाले दिनों में संगठित और असंगठित मजदूर, किसान तथा खेतिहर कामगार इस मुद्दे पर सड़क पर उतरेंगे।


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